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लग जा तू मेरे सीने से

लग जा तू मिरे सीना से दरवाज़ा को कर बंद 

दे खोल क़बा अपनी की बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर बंद 


अफ़्सून-ए-निगह से तिरी ऐ साक़ी-ए-बद-मस्त 

शीशे में हुई मिस्ल-ए-परी अपनी नज़र-बंद 


मकड़ाते हुए फिरते हैं हम कूचे में उस के 

क्या कीजिए दरवाज़ा इधर बंद उधर बंद 


या शाह-ए-नजफ़ नाम इशारे में तिरा लूँ 

हो जाए दम-ए-नज़अ ज़बाँ मेरे अगर बंद 


आवे वो अगर यार-ए-सफ़र-कर्दा तो 'इंशा' 

मैं दौड़ के किस लुत्फ़ से खुलवाऊँ क़मर-बंद

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